एक अधूरा उपन्यास... पृष्ठ4 आनंद के संबंध में विस्तृत जानकारी पड़ कर हज़ारों पत्र आए, सैंकड़ों फ़ोन कॉल,भावनाओं और उत्साह ने आनंद को भाव विभोर कर दिया। इसी उत्साह में उसने सबके पत्रों के उत्तर दिए किसी को उत्साह, किसी को प्रेरणा किसी को आश्वासन। कुछ पत्रों के उत्तर उसने नहीं दिए गिनती के 7_8 पत्र रहे होंगे। उन्हीं में से एक पत्र नीती का भी रह गया।। लगभग एक सप्ताह के बाद नीती का फिर से पत्र आया, उसने फिर से उत्तर नहीं दिया...जाने क्यों...10 दिन के बाद एक और पत्र आया नीती का..मगर इस पत्र में कुछ कठोर शब्दावली ने उसे झकझोर दिया। उस पत्र में क्योंकि फ़ोन नम्बर था,तो आनंद ने पत्र का उत्तर लिखने की अपेक्षा फ़ोन ही मिला दिया। नीती से बात करते हुए उसे एक स्पंदन का अनुभव हुआ.. ये जान लेने पर कि वह Electrical Engineering का डिप्लोमा करने लखनऊ जा रही है, तो उसने कहा की तुम डिप्लोमा कर लो तो मैं स्वयं तुम्हें बुला लूंगा। इसके बाद उसका कोई संपर्क नहीं रहा नीती से। 1998 August महीने की एक उमस भरी दोपहर,आनंद को एक फोन कॉल आया