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मैंने सोचा फ़िर से क़लाम कर लूं क्या यू भी मुमकिन

मैंने सोचा 
फ़िर से क़लाम कर लूं क्या
यू भी मुमकिन 
खुद ही जीना हराम कर लूं क्या 
मैं अब 
इंतेज़ार में ग़ुम हु
कभी आओ 
तो खुद ब खुद आना
मुझ को हासिल है 
कमाल का सबर 
बेबाक़
कोई शायद के कोई काश नहीं
मैं ग़र
मुक़म्मल क़रीब न रह सकू 
तो फ़िर 
ज़रा भी पास नहीं...

©ashita pandey  बेबाक़ #international_Justice_day  hindi poetry on life poetry on love urdu poetry
मैंने सोचा 
फ़िर से क़लाम कर लूं क्या
यू भी मुमकिन 
खुद ही जीना हराम कर लूं क्या 
मैं अब 
इंतेज़ार में ग़ुम हु
कभी आओ 
तो खुद ब खुद आना
मुझ को हासिल है 
कमाल का सबर 
बेबाक़
कोई शायद के कोई काश नहीं
मैं ग़र
मुक़म्मल क़रीब न रह सकू 
तो फ़िर 
ज़रा भी पास नहीं...

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