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किस्मत इक दिन बोली मुझसे आओ करलें दो-दो हाथ, न जा

किस्मत इक दिन बोली मुझसे 
आओ करलें दो-दो हाथ,
न जाने क्या सोच के मैं भी 
चल दी झट से उसके साथ।

वह थी पहले  ही तैयार
करने लगी वार पे वार,
मैं भी कहांँ थी डरने वाली
नहीं मानने वाली हार।

कभी इधर को फेंका मुझको 
और कभी फिर उधर धकेला,
मैंने भी उसका हर वार
हरदम हँस-हँस कर ही झेला।

आखिर देख हौसला मेरा
हो गई वह भी दंग,
कब तक वह लड़ती बेचारी
थक कर हो गई तंग।

सहनशक्ति, हिम्मत व हौसला
यही मेरे हथियार,
किसी भी मुश्किल से लड़ने को
हैं हरदम तैयार।

अब ना डरती ना घबराती
किसी के भी मैं डराने से,
क्यूँकि जीवन जिया ना जाता 
इस तरह घबराने से।

हांँ! हूँ तो इक नारी ही मैं
अड़ी रही और खड़ी रही,
ना टूटूंगी ना बिखरूंगी
बस इस जिद पे मैं अड़ी रही।

हिलाया आंँधियों ने भी आकर
और तूफानों ने भी झिंझोड़ा,
फिर भी कभी हिम्मत ना हारी
जीने का जज्बा ना छोड़ा।

©ayesha Siddique
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