धार्मिक-जातीय ध्रुवीकरण लोकतंत्र की ताक़त का बंटवारा कर उसे कमज़ोर बनाता है।राष्ट्र की उन्नति के बजाय स्थानीय बहुसंख्यक समुदाय के वर्चश्व और उन्नति में 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की भावना गौण हो जाती है।कट्टरता और जातिवाद का पोषण होता है।जिसका सीधा प्रभाव चुनाव के समय दिखाई देता है।टिकिटों का बंटवारा जिताऊ बहुसंख्यक उम्मीदवारों को किया जाता है।विकास के राष्ट्रीय मुद्दे जाति, समाज,या धर्म तक सीमित हो जाते हैं।यह क्षेत्रवाद और साम्प्रदायिकता के साथ जातीय वर्चश्व को बचाने के लिए संघर्ष के रूप में सामने आता है- ब्राह्मण, जाट, गुर्जर, हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,के रूप में एक दूसरे का मुखर विरोध ही नहीं कभी कभी हिंसक प्रतिरोध भी करते हैं।कभी उत्तर-प्रदेश और बिहार के साथ कई अन्य राज्यों के लोग निशाना बनते रहे।माओबाद बगैरह यह सब धार्मिक-जातीय ध्रुवीकरण का ही का असर है। धार्मिक-जातीय ध्रुवीकरण लोकतंत्र में भेदभाव,हिंसा के साथ कट्टर जातिवाद को मुखर करता है जो लोकतंत्र के लिए घातक है। 😊 #पाठकपुराण के साथ पेश है #राजस्थानपत्रिका के द्वारा पूछे गए आज के सवाल का जबाव साथियो आप भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हो सादर स्वागत है।चाहो तो आपकी बात भी आप रख कर पत्रिका समूह के व्हाट्सअप नम्बर- +91-9829266081 पर आपनी बात सेंड कर सकते हो। : #yqbaba #yqdidi #yqhindi 🌹☕🌺🌺🙏 सुप्रभातम💐💐💐💐🌺☕🙏