विपदा बहुत आई जीवन मे लोभ लालच है अब मन में कैसे छोरू मोह इस जग की असली सुख है तेरे चरण में शीश आगे झुकी कदम द्वारे रूकी राघव का कर उद्धार कब से खड़ा हूँ तेरे द्वार।। कबसे खड़ा हूँ तेरे द्वार अब तो नजर भी मां डाल आंसु नदीयां बनी मेरी उम्मीदें टली अब तो दरस दिखा एकबार फूल की डाली हाथ में लेकर ऊंचें पर्वत से मैं होकर