बेटी कहते हैं कि नारी ताड़न की अधिकारी है जन्मा तुम को जिसने वो भी एक नारी है गाँव की पगडंडी,हो या शहर का परिवेश हर ओर ही नारी का शोषण जारी है गैरों की बात क्या करना दोस्तों अपनों के बीच भी कहाँ सुरक्षित नारी है बेटी हो तो सिर बाप के झुक जाते है दहेज की कुछ इस कदर फैली महामारी है बेटा घर का चिराग बेटी पराये घर का राग बेटे बेटी का ये अंतरद्वंद्व अभी भी जारी है पाप किसी का दोष इसके के सर मढ़ा जाता है इस जुल्म को देख भी चुप रहती दुनिया सारी है आने देते नहीं बाहर माँ की कोख से जन्म से पहले कर देते मृत्यु हमारी है बेटा हुआ तो पुरुष का ही है सारा कमाल हो गई बेटी तो ये माँ की जिम्मेदारी है बेटे की चाह में कुछ यूं गिर जाते है लोग पहली के होते करते दूसरे विवाह की तैयारी है चैन से जीने नहीं देगा ये समाज तुझे यदि घर में बैठी तेरे बेटी कुंआरी है बेटे को दिए ये महल दुमहलें तुमने बेटी को मिली सिर्फ़ औरों की चाकरी है आज़ादी का सारा सुख तो है मर्दों के लिए औरत की दुनिया तो बस ये चारदीवारी है एक साथ ख़त्म हो जायें यदि औरतें सारी तो मिट जायेगी ये जो सृष्टि तुम्हारी है लुट रही है जो हर ओर लाज ललनाओं की समाज के ठेकेदारों बनती तुम्हारी भी जवाबदारी है महिला दिवस मना के एक पल ये भी सोचो क्या नारी सिर्फ इस एक दिन की अधिकारी है ? -