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आज यूँ ही अपना एक शेर याद हो आया जो खुद मुझे बहोत

 आज यूँ ही अपना एक शेर याद हो आया जो खुद मुझे बहोत पसन्द है। और ये मेरा पहला शेर था जो आज से 8 बरस पहले लिखा था मैंने।

ज़िन्दगी रास्ते मंजिलें कारवां,
खत्म होता नही कैसा है इमन्तेहाँ,
आँधियाँ मुश्किलें कश मकश के निशाँ,
पस्त होते नही हौसले हैं जवां,
मैं रुका मैं चला,बुझ गया फिर जला,
क्या लिखूं ऐ सफे क्या कहूँ दास्ताँ,
 आज यूँ ही अपना एक शेर याद हो आया जो खुद मुझे बहोत पसन्द है। और ये मेरा पहला शेर था जो आज से 8 बरस पहले लिखा था मैंने।

ज़िन्दगी रास्ते मंजिलें कारवां,
खत्म होता नही कैसा है इमन्तेहाँ,
आँधियाँ मुश्किलें कश मकश के निशाँ,
पस्त होते नही हौसले हैं जवां,
मैं रुका मैं चला,बुझ गया फिर जला,
क्या लिखूं ऐ सफे क्या कहूँ दास्ताँ,