संजोय तुम्हें यों आख़िर कब तक विक्षिप्त सी फिरती रहूं.. यादें तुम्हारी बावली कर देती हैं मुझे.. ना अपने में रह पाती हूं.. पाने को तुम्हें गलियों गलियों मतवाली सी घुमती फिरती हूं.. गए थे तो यादों को भी ले जाते.. अब ना जी पाती हूं ना ले यादों को तुम्हारे मर ही पाती हूं.. ♥️ Challenge-971 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।