कहीं ऐसा ना हो जाए के डर से कई फैसले मन के पिंजरे में कैद होकर रह जाते हैं।वक़्त बढ़ता जाता है और पिंजरा भी। #मन_का_पिंजरा #वक़्त_का_खेल