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शीर्षक : अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ ,

शीर्षक :  अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ ,
         मैं तुझसे अब धीरे - धीरे दूर हो रहा हूँ । देखो ये जो शामें होती हैं ना, इनसे इश्कबाज़ लोगो को बहुत मोहब्बत होती है । तो उन्ही शामों के कुछ पलों को अपने ख़यालों में संजोकर मैंने ये कविता लिखी है ।

शीर्षक :  अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ ,
             मैं तुझसे अब धीरे - धीरे दूर हो रहा हूँ ।
             
एक शाम वो भी थी जब मैं चाय बनाता था और सिसकिया तू लगाती थी ,
फिर तेरे लबों को अपने लबों से छूकर शाम की चाय हसीन हुआ करती थी ।
अब उन शाम की चाय को किसी और के नाम कर रहा हूँ ,
शीर्षक :  अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ ,
         मैं तुझसे अब धीरे - धीरे दूर हो रहा हूँ । देखो ये जो शामें होती हैं ना, इनसे इश्कबाज़ लोगो को बहुत मोहब्बत होती है । तो उन्ही शामों के कुछ पलों को अपने ख़यालों में संजोकर मैंने ये कविता लिखी है ।

शीर्षक :  अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ ,
             मैं तुझसे अब धीरे - धीरे दूर हो रहा हूँ ।
             
एक शाम वो भी थी जब मैं चाय बनाता था और सिसकिया तू लगाती थी ,
फिर तेरे लबों को अपने लबों से छूकर शाम की चाय हसीन हुआ करती थी ।
अब उन शाम की चाय को किसी और के नाम कर रहा हूँ ,