शीर्षक : अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ , मैं तुझसे अब धीरे - धीरे दूर हो रहा हूँ । देखो ये जो शामें होती हैं ना, इनसे इश्कबाज़ लोगो को बहुत मोहब्बत होती है । तो उन्ही शामों के कुछ पलों को अपने ख़यालों में संजोकर मैंने ये कविता लिखी है । शीर्षक : अपनी शाम किसी और के नाम कर रहा हूँ , मैं तुझसे अब धीरे - धीरे दूर हो रहा हूँ । एक शाम वो भी थी जब मैं चाय बनाता था और सिसकिया तू लगाती थी , फिर तेरे लबों को अपने लबों से छूकर शाम की चाय हसीन हुआ करती थी । अब उन शाम की चाय को किसी और के नाम कर रहा हूँ ,