गैर जो थे वो आँखो में नमी दे गए, अपने जो थे वो लबों पर हँसी दे गए ॥ दिले -ए गुलिस्तान में इक चुभन सी दे गए , सुनहरी ख्वाबों के अरमानों के टुकड़े दे गए। गैर ही तो थे उदासी हमारी देख तब भी अश्क दे गए मुसाफिर ना थे गर तो आँखो से नम वो भी क्यूं ना हो गए ॥ It's Life #YourQuoteAndMine Collaborating with Decent