मेरा प्रेम एक मौन है, जो जीता है प्रियतमा को, मेरा प्रेम एक समर्पण है, जो पाता है तुझे कण कण में। मेरा प्रेम एक साधना है, जो गाता है नित प्रियतमा को। मेरा प्रेम एक अभिव्यक्ति है, जिसे मौन गुनगुनाता है, मेरा प्रेम एक उपासना है, जो पल पल तुझे भजता है, मेरा प्रेम एक गीत है, जिसे मेरा हर भाव पिरोता है, मेरा प्रेम एक कविता है, जिसे प्रेमी मेरा,प्रेरणा रूप देता है, मेरा प्रेम एक अंतर्मिलन है, प्रेम में ही समा जाने सा, मेरा प्रेम एक जिज्ञासा भी है, प्रेम की परिभाषा जीने सा। शायद उसी प्रेम को ही जीता हूं मैं, और हर पल तुझमें खोता हूं मैं।। #अरुणिमा बहादुर खरे "वैदेही" ©Navash2411 #नवश