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मैं मासूमियत लिखता हूं। तो उसका चेहरा सामने आता है

मैं मासूमियत लिखता हूं।
तो उसका चेहरा सामने आता है।।
मैं उसका लिए वक्त लिखना चाहता हूं ।
लेकिन वक्त भी ठहर जाता है।।
शायद वक्त को भी उसकी अहमियत का अहसास है!
मेरी कलम से भी कही ज्यादा ।
मैं खूबसूरत कहूं तो! उसकी बालियां
और उसके हवा के झोखों से उलझते बालो संग उलझी 
एक खूबसूरत सी लड़की ।
 मेरे नजरो के सामने नजर आ जाती है।।
मैं नज़्म सुनना चाहता हूं फिर जाने कैसे?
 उसकी आवाज मुझे महसूस हो जाती है।।
मेरे छंद में सिर्फ और सिर्फ वो ही है ।
लेकिन उसके किसी भी अदाओं में जाने उसे वो नजर नहीं आती!
जानता हूं शायद उसने आइना नही देखा ।
शायद उसने सत्य को तालाश में खुद से मिलना नहीं सीखा।। 
वो खूबसूरत भी है ,मासूम भी!
वो खुद में टूटती और उड़ती एक मिसाल भी!
बस इस मिसाल को खुद से मिलना है।।
उस आईने से इतना ही कहना है कि हा।
मैं उस कविता के जैसे दिखती हूं।।
हा मैं अपने हुनर से लिखे तक को भी छोटा कर सकती हूं!
क्योंकि मैं हूं हा वो मैं हूं!
जिसकी ये कविता है।
हा मैं वो हूं.....

©Ahsas Alfazo ke
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