सदियों पुराना वो भारत देश, कहां कर चला गया नारी में देवी दिखती थी, वो परिवेश कहां पर चला गया चली गई संस्कार की पाठशाला,चली गई शर्म लाज घर की खो गए सब आत्मिक रिश्ते ,टूट गई मर्यादाएं घर की" "प्रेंभाव सब गौण हो गया, बिछी है स्वार्थ की पगडंडियां मन के प्रेम से जिस्म पर आ गए , तोड़ के तुम समाज की बेड़ियां" चला गया तप ऋषि का, पाखंड आस्था पर भारी है लुप्त हुवे ज्ञान के आश्रम, क्लब पब की छाई खुमारी है चला गया मान नारी का, चला गया भाई भरत सा नहीं रहीं सीता जैसी पत्नी ,नहीं रहा हनुमान भक्त सा नहीं रहा वो मर्यादा वाला राम, नहीं रहा वो भाई लक्ष्मण कलयुग नहीं ये स्वर्थयुग है,घर घर मिल जाएंगे विभीषण चलो सती प्रथा गई भारत से, मगर भ्रूण हत्या का जोर यहां कम हो गई प्रदा प्रथा मगर, नग्नता का दौर यहां कहां चली गई वो संस्कार की विरासत, आदर सम्मान बुजुर्ग का कहां से कहां चला गया भारत मेरे, क्या आलम लिखूं तेरे दर्द का बड़ा दर्द तो भारत ये है ,क्यूं? तेरे घर में बेटी की अस्मत नोची जाती है सरेराह ये बेइज्जत होती क्यूं? बाजार में इनकी इज्जत बेची जाती है एक दहेज दर्द है भारत तेरा मेरा, क्या इसका कोई निचोड़ नहीं दोषी लड़का भी लड़की भी शादी में दिखावे कु मच जो होड़ रही एक दर्द है न्याय का भारत, सम्राट विक्रम सा क्यूं न्याय नहीं स्वर्णिम है इतिहास के पन्ने तेरे , क्यूं अब स्वर्णिम अध्याय नहीं आखिर चला गया कहां ताज वो तेरा, भारत विश्व गुरु जो तुझको कहते थे मां बहन बेटी को था देवी का दर्जा, मिलजुल कर सब रहते थे क्या है क्या चला गया भारत तुझसे इतने पन्ने लिख नहीं पाऊंगा दर्द क्या तेरी रूह का जन जन को कैसे बताऊंगा "कलम का सिपाही" हूं मै तो भारत तेरे दर्द का अल्फाज लिखना चाहा है दर्द तो बहुत बड़ा है भारत बस थोड़ा सा मैंने सुनाया है। बस थोड़ा सा मैंने सुनाया