ज़रूरी है टूट चुकी जो दुनिया , अब अंधेरा सा लगता है।। निराश हो चुका मनुष्य अब तो, प्रकृति का मारा सा लगता है प्रकृति पर कब्जा कर बैठे थे, विज्ञान के वह महारथी भी अब बेबस से लगते हैं । जो सोचते थे, मंगल चांद पर भी घर बनाने का। उन्हें अब पृथ्वी पर भी घर शमशान सा लगता है, चितायें जल रही चारों ओर प्रकृति पर हुए जुल्मों का अब दीपदान सा लगता है ©Sachin Sharma #corona #savenvironment #PoetInYou