सुनो, जब तलक नहीं आते तुम, मैं करूंगी, तुम्हारा इंतिजार, सुबह से शाम, शाम से रात, रात से भोर, ये जो व्याकुलता हैं, मुझे घेरे हर रोज, मैं डालूंगी बांहो का हार, जब आओगे तुम इस बार, मैंने लिखें हैं कुछ गीत, और सुलझाए हैं बाल, मैंने बिखेरी हैं खुशबूए घटाओं में, रचाई हैं मेहंदी और, सजाया हैं आलता पाओं में, मैं लगाती सुरमा आँखों में, और करती तेरा इंतिजार, मैंने तुम्हारे नाम पर किया हैं सोलह श्रृंगार | ©Sonam kuril #naam #waiting #इंतिजार #Love सुनो, जब तलक नहीं आते तुम, मैं करूंगी, तुम्हारा इंतिजार, सुबह से शाम, शाम से रात, रात से भोर, ये जो व्याकुलता हैं, मुझे घेरे हर रोज, मैं डालूंगी बांहो का हार, जब आओगे तुम इस बार,