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बहन, जब पहली बार गोद मे आती है। एक पुरुष का वात्सल

बहन,
जब पहली बार गोद मे आती है।
एक पुरुष का वात्सल्य से प्रथम परिचय होता है।

बहन,
जब तुतलाती जवान से भाई के,
पीछे पीछे बोलती है,
माँ, पापा, बाबा।
एक गुरु का जन्म होता है।

बहन 
जब लड़खड़ा के चलना सीखती है।
आगे बढ़ कर थाम लेते है कंधा।
दो नरम हाथ।
पहली बार मजबूत होते हृदय 
में,
बंधता है साहस।
सहारा होने का।
पौरुष का वीरता से प्रथम परिचय होता है।

यूँ ही क्रमबद्ध बहन बनाती है भाई को।
पर्बत, आकाश ,बरगद।
नींव,दीवार, घर, में उसके नाम का भरोसा देती है।

भाई के पौरुष को मानवता का लिबास।
पहनाती है बहन।

सिमटी सकुचाई सी रहने वाली गुड़िया।
न जाने कब मुसबीत से लड़ने वाली मर्दानी बन जाती है,
पता ही नहीं चलता।।

बहन से ही घर बगिया उपवन।
बहन से सारे उत्सव हैं।

भाई एक बलिष्ट शरीर का रूपक है।
बहन आत्मा है पावन।
बहन बनाती पुरुष को मानव।
और समझाती है जीवन।

©निर्भय चौहान #love_shayari Kumar Shaurya mahi singh Sudha Tripathi Madhusudan Shrivastava Sandeep Kumar Saveer
बहन,
जब पहली बार गोद मे आती है।
एक पुरुष का वात्सल्य से प्रथम परिचय होता है।

बहन,
जब तुतलाती जवान से भाई के,
पीछे पीछे बोलती है,
माँ, पापा, बाबा।
एक गुरु का जन्म होता है।

बहन 
जब लड़खड़ा के चलना सीखती है।
आगे बढ़ कर थाम लेते है कंधा।
दो नरम हाथ।
पहली बार मजबूत होते हृदय 
में,
बंधता है साहस।
सहारा होने का।
पौरुष का वीरता से प्रथम परिचय होता है।

यूँ ही क्रमबद्ध बहन बनाती है भाई को।
पर्बत, आकाश ,बरगद।
नींव,दीवार, घर, में उसके नाम का भरोसा देती है।

भाई के पौरुष को मानवता का लिबास।
पहनाती है बहन।

सिमटी सकुचाई सी रहने वाली गुड़िया।
न जाने कब मुसबीत से लड़ने वाली मर्दानी बन जाती है,
पता ही नहीं चलता।।

बहन से ही घर बगिया उपवन।
बहन से सारे उत्सव हैं।

भाई एक बलिष्ट शरीर का रूपक है।
बहन आत्मा है पावन।
बहन बनाती पुरुष को मानव।
और समझाती है जीवन।

©निर्भय चौहान #love_shayari Kumar Shaurya mahi singh Sudha Tripathi Madhusudan Shrivastava Sandeep Kumar Saveer