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मौन धरकर नभ में..मैं निकलता हूँ, जो भी हो जन लोक म

मौन धरकर नभ में..मैं निकलता हूँ,
जो भी हो जन लोक में..मैं चलता हूँ,
किरणों से जीवों को..जीवन देकर;
मैं सूरज...तुम्हारे लिए जलता हूँ।

आभा किरणें खोकर..मैं ढलता हूँ,
मयंक की शोभा के लिए..छुपता हूँ,
गगन धरा सब को कांतिमान करकर,
मैं सूरज..तुम्हारे लिए जलता।

अथाह जलधि से संघर्ष..मै करता हूँ,
बादलो को वर्षा से...मै भरता हूँ,
ताल सरोवर नदिया सब कुछ भरकर,
मै सूरज..तुम्हारे लिए जलता हूँ।

पादप पत्तो को छूकर गुजरता हूँ,
पहाड़ों के आँचल पर बिखरता हूँ,
वन उपवन जल जन को औषधि देकर, 
मै सूरज..तुम्हारे लिए जलता हूँ।

©Anand Dadhich #sun #सूरज #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #poetsof2022
#sunrays
मौन धरकर नभ में..मैं निकलता हूँ,
जो भी हो जन लोक में..मैं चलता हूँ,
किरणों से जीवों को..जीवन देकर;
मैं सूरज...तुम्हारे लिए जलता हूँ।

आभा किरणें खोकर..मैं ढलता हूँ,
मयंक की शोभा के लिए..छुपता हूँ,
गगन धरा सब को कांतिमान करकर,
मैं सूरज..तुम्हारे लिए जलता।

अथाह जलधि से संघर्ष..मै करता हूँ,
बादलो को वर्षा से...मै भरता हूँ,
ताल सरोवर नदिया सब कुछ भरकर,
मै सूरज..तुम्हारे लिए जलता हूँ।

पादप पत्तो को छूकर गुजरता हूँ,
पहाड़ों के आँचल पर बिखरता हूँ,
वन उपवन जल जन को औषधि देकर, 
मै सूरज..तुम्हारे लिए जलता हूँ।

©Anand Dadhich #sun #सूरज #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #poetsof2022
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