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इक उम्र का हिसाब लेके आ गये। निसाब-ए-दर्द-ए-यार ले

इक उम्र का हिसाब लेके आ गये।
निसाब-ए-दर्द-ए-यार लेके आ गये।

जो तूने दी सदा तो सब समेटकर,
था जो भी दस्तयाब लेके आ गये ।

ज़कात लाज़मी है अब तो दर्द पे,
हम इतने टूटे ख़्वाब लेके आ गये!


यहां तो उसकी रहमतें बरसती हैं,
यहां भी तुम अज़ाब लेके आ गये!

न हश्र का ही दिन न है ख़ुदा तो क्यूं,
गुनाह और सवाब लेके आ गये!

क्युं मुख़्तसर सी ज़िंदगी में ख़्वाहिशें,
दिलों में बेहिसाब लेके आ गये!

हमेशा एक इम्तिहां में दिल रहा
ख़िज़ां में हम गुलाब लेके आ गए!
1212 1212 1212

©Aliem U. Khan
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