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2 Years of लोगों के पहले जैसे अब ख़ुशनुमा मि | Hin

2 Years of Nojoto लोगों के पहले जैसे अब ख़ुशनुमा मिज़ाज नही होते ,
 लगता जैसे अब एक दूजे के संग ताल्लुक़ात नही होते !
दिलों के अफ़साने रख देते थे लोग लोगो के सामने पहले
शायद अब नव युग मे लोग दूसरे के मदतगार नही होते !!
नही होते यंहा अब बेनकाबी चेहरे अब खुली किताबो से ,
  अरमानों का गला घोंटते सब है, अपने अपनी ही बातों से !
 जमाना वो था लोग बिन कहे दिल के जज़्बात समझ लेते थे ,
बिना आंसुओ के लोग एक दूसरे के सुख दुःख भांप लेते थे !
रिश्ता ,लगाव और दिल के तार जुड़े थे उनसे इसकदर साहिब
जब जाते तन्हा छोड़कर हमे,हृदय भी तर बतर कर देते थे !!  
महबूब के प्यारे संदेशो में इक गज़ब का अहसास होता था ,
कब आएंगे प्रीतम के ख़त इसका इंतजार ख़ास होता था ! 
तकिये के नीचे उनकी यादों का एक मेला लगा होता था ,
उनसे मिलने के ख़ुशी में डगर पे नजरो का पहरा होता था !
अब आ गयी है नई तकनीकें बहुत करीब तो हम  आ गए ,
पर आज हम सभी जज्बातों की पहुँच से कोशो दूर हो गए !
जहाँ दिल से काम लेना था ,आज वही  दिमाग आ गया ,
इंसानियत क्या.. इंसान ही इंसान की जड़ो को खा गया !
विदेशी सभ्यता अपनाकर दम्भो का ऊंचा मकान हो गया ,
जिस बाप का सब कुछ था आज वही कर्जदार हो गया !
भाई ने ही भाई से वाद के सलीक़े में विवाद कर लिया ,
करके उपवन के टुकड़े,खुद ही बंधनो से अलगाव कर लिया !
खोये है इस कदर जिंदगी की तरक़्क़ी और अहंकारों में ,
डुबोकर मानवता की पगड़ी खुद सर पर ताज रख लिया !!
जो बेटियां देवी थी आज आधुनिकता का अवतार ले लिया ,
अच्छे भले समाज को मात्र परिवर्तन का नाम दे दिया !
न अब वो बात रही शिष्यों और गुरुओं में आजकल साहिब,
शिक्षा मांगने लगी है भीख ,स्कूलों को सबने व्यापार कर लिया !!
न परी,न कथाएँ,न कविताएँ रही चुटकुलों की भरमार हो गया,
पक्के हो गए मकान सभी के ,पर इंसान तो पत्थर हो गया !
पनप गया लोगो मे रोष,ईर्ष्या,द्वेष मित्र गले का नाप ले गया ,
चलते हुए नव्य की सतहों पर कैसे पांव घायल हो गया !!
जिंदगी की इस दौड़भाग में मशीनों से भी बद्तर हो गए राहुल ,
किसको खबर की हम पतन की ओर इक कदम अग्रसर हो गए !! लोगों के पहले जैसे अब ख़ुशनुमा मिज़ाज नही होते ,
 लगता जैसे अब एक दूजे के संग ताल्लुक़ात नही होते !
दिलों के अफ़साने रख देते थे लोग लोगो के सामने पहले
शायद अब नव युग मे लोग दूसरे के मदतगार नही होते !!
नही होते यंहा अब बेनकाबी चेहरे अब खुली किताबो से ,
  अरमानों का गला घोंटते सब है, अपने अपनी ही बातों से !
 जमाना वो था लोग बिन कहे दिल के जज़्बात समझ लेते थे ,
बिना आंसुओ के लोग एक दूसरे के सुख दुःख भांप लेते थे !
2 Years of Nojoto लोगों के पहले जैसे अब ख़ुशनुमा मिज़ाज नही होते ,
 लगता जैसे अब एक दूजे के संग ताल्लुक़ात नही होते !
दिलों के अफ़साने रख देते थे लोग लोगो के सामने पहले
शायद अब नव युग मे लोग दूसरे के मदतगार नही होते !!
नही होते यंहा अब बेनकाबी चेहरे अब खुली किताबो से ,
  अरमानों का गला घोंटते सब है, अपने अपनी ही बातों से !
 जमाना वो था लोग बिन कहे दिल के जज़्बात समझ लेते थे ,
बिना आंसुओ के लोग एक दूसरे के सुख दुःख भांप लेते थे !
रिश्ता ,लगाव और दिल के तार जुड़े थे उनसे इसकदर साहिब
जब जाते तन्हा छोड़कर हमे,हृदय भी तर बतर कर देते थे !!  
महबूब के प्यारे संदेशो में इक गज़ब का अहसास होता था ,
कब आएंगे प्रीतम के ख़त इसका इंतजार ख़ास होता था ! 
तकिये के नीचे उनकी यादों का एक मेला लगा होता था ,
उनसे मिलने के ख़ुशी में डगर पे नजरो का पहरा होता था !
अब आ गयी है नई तकनीकें बहुत करीब तो हम  आ गए ,
पर आज हम सभी जज्बातों की पहुँच से कोशो दूर हो गए !
जहाँ दिल से काम लेना था ,आज वही  दिमाग आ गया ,
इंसानियत क्या.. इंसान ही इंसान की जड़ो को खा गया !
विदेशी सभ्यता अपनाकर दम्भो का ऊंचा मकान हो गया ,
जिस बाप का सब कुछ था आज वही कर्जदार हो गया !
भाई ने ही भाई से वाद के सलीक़े में विवाद कर लिया ,
करके उपवन के टुकड़े,खुद ही बंधनो से अलगाव कर लिया !
खोये है इस कदर जिंदगी की तरक़्क़ी और अहंकारों में ,
डुबोकर मानवता की पगड़ी खुद सर पर ताज रख लिया !!
जो बेटियां देवी थी आज आधुनिकता का अवतार ले लिया ,
अच्छे भले समाज को मात्र परिवर्तन का नाम दे दिया !
न अब वो बात रही शिष्यों और गुरुओं में आजकल साहिब,
शिक्षा मांगने लगी है भीख ,स्कूलों को सबने व्यापार कर लिया !!
न परी,न कथाएँ,न कविताएँ रही चुटकुलों की भरमार हो गया,
पक्के हो गए मकान सभी के ,पर इंसान तो पत्थर हो गया !
पनप गया लोगो मे रोष,ईर्ष्या,द्वेष मित्र गले का नाप ले गया ,
चलते हुए नव्य की सतहों पर कैसे पांव घायल हो गया !!
जिंदगी की इस दौड़भाग में मशीनों से भी बद्तर हो गए राहुल ,
किसको खबर की हम पतन की ओर इक कदम अग्रसर हो गए !! लोगों के पहले जैसे अब ख़ुशनुमा मिज़ाज नही होते ,
 लगता जैसे अब एक दूजे के संग ताल्लुक़ात नही होते !
दिलों के अफ़साने रख देते थे लोग लोगो के सामने पहले
शायद अब नव युग मे लोग दूसरे के मदतगार नही होते !!
नही होते यंहा अब बेनकाबी चेहरे अब खुली किताबो से ,
  अरमानों का गला घोंटते सब है, अपने अपनी ही बातों से !
 जमाना वो था लोग बिन कहे दिल के जज़्बात समझ लेते थे ,
बिना आंसुओ के लोग एक दूसरे के सुख दुःख भांप लेते थे !