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माना कि, इश्क एक समंदर है। छुपा, कितना भी रहे ,दिल

माना कि, इश्क एक समंदर है।
छुपा, कितना भी रहे ,दिल के अंदर है।।
जिसके,आगे मैं शीश झुकाता हूं।
जिधर,देखूं सिर्फ उसे ही क्यों मैं पाता हूं।।
पता है मेरे दिल को, जो हरदम उसे रुलाता हूं।
लेकिन, एक बात जान लो हरदम उसको अपने दिल में ही सुलाता हूं।।
इसलिए, उसके दिल को इतना भाता हूं।
,,समुंदर इश्क,,

©Abhishek tripathi#chgr@c #chgr#@:c:

#chgr#@:c

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माना कि, इश्क एक समंदर है।
छुपा, कितना भी रहे ,दिल के अंदर है।।
जिसके,आगे मैं शीश झुकाता हूं।
जिधर,देखूं सिर्फ उसे ही क्यों मैं पाता हूं।।
पता है मेरे दिल को, जो हरदम उसे रुलाता हूं।
लेकिन, एक बात जान लो हरदम उसको अपने दिल में ही सुलाता हूं।।
इसलिए, उसके दिल को इतना भाता हूं।
,,समुंदर इश्क,,

©Abhishek tripathi#chgr@c #chgr#@:c:

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