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अंधेरे में ढलती वह सुनहरी शाम चाय की सिप लिए मुझसे

अंधेरे में ढलती वह सुनहरी शाम
चाय की सिप लिए
मुझसे रोज कहती है चमकना
और चाहे कितनी भी चमककाहट क्यों ना हो
फिजूल ना महकना

उसका आकर्षण इस कदर चमकता है आंखों में
की खाक में भी संजीवनी भर दे 
मैं हर साँझ निहारता हूं उसे
इसलिए क्योंकि मेरी भी कहीं आहे भर दे

उससे नम ना कोई ना ही उस से उज्जवल
उसका दृश्य ही सुकून पहुंचाता है मन को

#Yãsh🖊 #evening #view #Emotion #Thoughts #Thinking #Shayari #Poem
अंधेरे में ढलती वह सुनहरी शाम
चाय की सिप लिए
मुझसे रोज कहती है चमकना
और चाहे कितनी भी चमककाहट क्यों ना हो
फिजूल ना महकना

उसका आकर्षण इस कदर चमकता है आंखों में
की खाक में भी संजीवनी भर दे 
मैं हर साँझ निहारता हूं उसे
इसलिए क्योंकि मेरी भी कहीं आहे भर दे

उससे नम ना कोई ना ही उस से उज्जवल
उसका दृश्य ही सुकून पहुंचाता है मन को

#Yãsh🖊 #evening #view #Emotion #Thoughts #Thinking #Shayari #Poem
yshbr3300539344898

Yãsh BøRâ

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