याद है आज भी "बरसाने" से "मथुरा" का सफर। बैठी थी वो अंज़ान, न जाने कौन सा था उसका शहर। चेहरा हमें हमेशा, अच्छे से याद है रहेगा उसका। चाहे उस "सफर" की याद मे, गुज़र जाये सारी उमर। ©ब्राह्मण अभिषेक पटैरिया #_यादें