वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से मगर, है कथा पुराणों में जब पुतलों से फ़ुर्सत हो तब पढ़ आना जय विजय दो पार्षद विष्णु के इनकी कथा को सुन आना सनत्कुमार को रोका दोनों ने न विष्णु से इन्हें मिलने दिया बार बार कहने पर भी जब बातों पर दोनों ने न कान दिया सनतकुमारों ने फिर तीन बार राक्षस होने का श्राप दिया पहुँचे तब तक द्वार पर विष्णु चारों का स्वंय सत्कार किया अपने पार्षदों के उद्धार के लिए अवतार लेना स्वीकार किया हिरण्याक्ष,हिरण्यकश्यपु व रावण,कुम्भकर्ण का नाश हुआ श्रीकृष्ण अवतार में फिर शिशुपाल, दंतवक्र का उद्धार हुआ वाकिफ़ था अंजाम से फिर अपने सिद्धान्तों पर टिका रहा भक्तों पर करुणा तो देखा पर दुष्टों के तारण का साक्ष्य बना #RavanaEvil