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ख़ुदा की नेमत या फिर उसे ख़ुदा हीं मानु। ज़ुम्मे की श

ख़ुदा की नेमत या फिर उसे ख़ुदा हीं मानु।
ज़ुम्मे की शाम उसे मिलूं या फिर ख़ुदा को नमाज़ू।
ऐ ख़ुदा रहमत कर और सुन ले मेरी अल्फाज़ु।
करूँ तेरी ख़ुदाई या मुस्तक़बिल की करूँ ज़ुस्तज़ु। मेरी दूसरी शायरी
ख़ुदा की नेमत या फिर उसे ख़ुदा हीं मानु।
ज़ुम्मे की शाम उसे मिलूं या फिर ख़ुदा को नमाज़ू।
ऐ ख़ुदा रहमत कर और सुन ले मेरी अल्फाज़ु।
करूँ तेरी ख़ुदाई या मुस्तक़बिल की करूँ ज़ुस्तज़ु। मेरी दूसरी शायरी
anmolsingh5816

Anmol Singh

New Creator