ख़ुदा की नेमत या फिर उसे ख़ुदा हीं मानु। ज़ुम्मे की शाम उसे मिलूं या फिर ख़ुदा को नमाज़ू। ऐ ख़ुदा रहमत कर और सुन ले मेरी अल्फाज़ु। करूँ तेरी ख़ुदाई या मुस्तक़बिल की करूँ ज़ुस्तज़ु। मेरी दूसरी शायरी