बार बार मेरे जख्मों का, मुझे ऐहसास करा देते हैं। वो नहीं समझते दर्द, जो हसने का मशवरा देते हैं। तलवारें भी नहीं कर पाती हैं, तन पर घाव जितना, लफ्ज़ ही है जो अक्सर हमे, जख्म गहरा देते हैं। बाद में समझ आती है उनकी अहमियत हमें जिनको, बेकार बोल कर यूँ ही, हम लोग ठुकरा देते हैं। आधी रात में निकलते हैं, आंखों से अश्क़ बनकर, वो गुजरे पल हमें अक्सर, अनुभव बुरा देते हैं। हर बाज़ी को जीतने का हुनर, हमनें सीखा है मगर, तेरी मासूमियत के आगे, खुद को हरा देतें हैं। खत्म करते हैं खुद को अब हम आसमान चुनते हैं, और तुम्हें जीने की खातिर ये पूरी धरा देते हैं। :-N Kumar "Sahab" #puri_dhara_dete_h