ज़िन्दगी के क़िस्से है सहाब जैसे दौड़ती हुई रेल है कोई तोड़ता है, कोई टूटता है बस प्यार का ही सब खेल है बड़ी मुश्किल से यार मिलते है खुदा जाने कब वीरान से हो जाएंगे अनजान बनकर मिले थे नज़ाने,कब अनजान से हो जाएंगे कलयुग के जमाने में खुदा जैसे यार तो मिल गए जैसे बंजर हुई जमीं पे बिन पानी के गुल खिल गए दिल्लगी से थे दिल लगे दिल्लगी जैसे ही दिल गए चाहे पत्थर दिल से बिछड़े गे पर फिर नादान से हो जाएंगे अनजान बनकर मिले थे नज़ाने,कब अनजान से हो जाएंगे गुजरे वक़्त और बिछड़े यार कहा वो लौटकर फिर से आते है ऐसे हुआ....तो ऐसे मिले वो पल ही पास रह जाते है जिन दिलो से दिलो को रब माना वो बच्चे दिल.... जवां से हो जाएंगे अनजान बनकर मिले थे नज़ाने, कब अनजान से हो जाएंगे। _akshay #@njaaan