क्या करे साहब लरकी हू न बचपन से दबकर रहने की आदत लगते देखी हूँ (लड़कौ ) उन्हे मुहँ लगाते हमारे मुहँ पे ताला लगते देखी हू उन्हे convent खुद को government ले जाते देखी हूं फालतू पैसे नहीं के नारे लगते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना ।। खुद को समाज का खौफ खाते उन्हे लड़की झेङते देखी हूँ कुछ किए बिना खुद को बहुत कुछ सुनते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना। । खुद के गालो पर चाटा उन्हे चाटा रसीद करते देखी हूं फिर भी उन्हे आँखो का तारा खुद को बोझ कहलाते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना ।। खुद के पंख कतरते उन्हे पंख लगाते देखी हूं किसी की इज्जत को सरेआम निलाम करते देखी हूं क्या करें साहब लड़की हूं ना ।। माता-पिता के प्यार में अंतर आते उनके गलत में भी प्यार न्यौछावर करते देखी हूं खुद को लड़की होने से डरते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हूं ना ।। अब खुद को भगवान् से लङका बनाने की विनती। भेद भाव के बोझ तले खुद को झुकते देखी हूं लड़की न बनाने की अर्जी लगाते देखी हूँ अगले जन्म मोहे लड़की ही की जो की शिकायत लगते देखी हूं क्या करे साहब लड़की हू ना। #लरकी हू ना