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जिम्मेदारी में जकड़े होते हैं परिवार की बाग-डोर पक

जिम्मेदारी में जकड़े होते हैं
परिवार की बाग-डोर पकड़े होते हैं,
कुछ शौक का गला घोंटते हैं 
तो कुछ पसंद को अपनी रौदतें हैं,
खोकर भी सबकुछ कहाँ कुछ खोते हैं ?
आखिर लड़के खुलकर कहाँ रोते हैं ?

बंद कमरा सिसकी का सहारा होता है
हर लड़का कहाँ निकम्मा और आवारा होता है,
मोहब्ब़त खोकर भी हँसना पड़ता है 
माँ-बाप के लिए सोचना पड़ता है,
सभी आशिक़ कहाँ होते हैं ?
आखिर लड़के खुलकर कहाँ रोते हैं ?

©Ankit Yaduvanshi #Arunendra7
#arunendrakumar
#ekkhwaab 
#ashivir7 
#Shayar 
#Shayari 
#findingyourself
जिम्मेदारी में जकड़े होते हैं
परिवार की बाग-डोर पकड़े होते हैं,
कुछ शौक का गला घोंटते हैं 
तो कुछ पसंद को अपनी रौदतें हैं,
खोकर भी सबकुछ कहाँ कुछ खोते हैं ?
आखिर लड़के खुलकर कहाँ रोते हैं ?

बंद कमरा सिसकी का सहारा होता है
हर लड़का कहाँ निकम्मा और आवारा होता है,
मोहब्ब़त खोकर भी हँसना पड़ता है 
माँ-बाप के लिए सोचना पड़ता है,
सभी आशिक़ कहाँ होते हैं ?
आखिर लड़के खुलकर कहाँ रोते हैं ?

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