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यादों के इस ओंझल परत पर कुछ स्मृतियाँ छिपी थीं...

यादों के इस ओंझल परत पर कुछ स्मृतियाँ छिपी थीं...
ये स्मृतियाँ हर पल तेरे होने का आभास दिला रहीं थीं.. मन कहता कि कुछ नहीं है मेरे मित्र परन्तु ये स्मृतियाँ अपने निर्णय पर बिलकुल अडिग थीं...और मैं इन दोनों के द्वन्द में फँसा जा रहा था... मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या सचमुच कोई है... मैं कुंठित कि भाँति सब सुन रहा था... धीरे -धीरे मन विचलित होता गया और स्मृतियाँ मन के एक कोने में बने अपने अपने -अपने घरों में चली गयीं... तब जाकर मेरी नींद खुली सब कुछ ठीक था !!
 #स्मृतियाँ #मन #परीक्षित सिंह 😌😌
यादों के इस ओंझल परत पर कुछ स्मृतियाँ छिपी थीं...
ये स्मृतियाँ हर पल तेरे होने का आभास दिला रहीं थीं.. मन कहता कि कुछ नहीं है मेरे मित्र परन्तु ये स्मृतियाँ अपने निर्णय पर बिलकुल अडिग थीं...और मैं इन दोनों के द्वन्द में फँसा जा रहा था... मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या सचमुच कोई है... मैं कुंठित कि भाँति सब सुन रहा था... धीरे -धीरे मन विचलित होता गया और स्मृतियाँ मन के एक कोने में बने अपने अपने -अपने घरों में चली गयीं... तब जाकर मेरी नींद खुली सब कुछ ठीक था !!
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