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कि फिर से इस खुदगर्ज बस्ती में, उतर जाऊं मैं, जब र

कि फिर से इस खुदगर्ज बस्ती में, उतर जाऊं मैं,
जब रास्ते ही अपने लगते हैं तो क्यों घर जाऊं मैं,
अपनी सांसें, ये वक़्त, एक जिंदगी, 
सब तो लुटा दी, अब क्या मर जाऊं मैं,
~ GULSHAN KUMAR JHA #jashn_e_zimdagi
कि फिर से इस खुदगर्ज बस्ती में, उतर जाऊं मैं,
जब रास्ते ही अपने लगते हैं तो क्यों घर जाऊं मैं,
अपनी सांसें, ये वक़्त, एक जिंदगी, 
सब तो लुटा दी, अब क्या मर जाऊं मैं,
~ GULSHAN KUMAR JHA #jashn_e_zimdagi