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गुरु और शिष्य का नाता दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है।

गुरु और शिष्य का नाता दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है।
मन बुद्धि आत्मा तक जिसकी पकड़ होती है।
वह गुरुजी ही होते है। जब भी उनके साथ कुछ
उपेक्षित किया जाए तो, उन्हें बहुत दुःख होता है।
और रूठे इष्टदेव का कोपभागी बन,
ख़ामियाजा भुगतना ही पड़ता है।
आप सभी को
परशुराम जयंती की शुभकामनाएं।

कैप्शन पढ़ ही डालिये...💐
क्रमशः- 02 #गुरु_और_शिष्य हमारे शास्त्र और पुराण तो गुरु शिष्य के दृष्टांतो से भरे पड़े हैं। सृष्टि के आरंभ से यह परंपरा हमने ही दुनिया को दी।
इसका प्रमाण हमारा ऋग्वेद है।जिसे दुनिया के प्रमुख शोध संस्थान प्राचीनतम ग्रंथ मान चुके हैं।
सनातम परम्परा से आज की अधुनिकता तक हमने गुरु और शिष्य के शानदार उदाहरण देखे है।
आदित्य और अंगिरा ऋषि से शुरू हुई ये परम्परा सूर्य शिव वृहस्पति इंद्र तक आई उसके बाद ब्रह्मा जी से धन्वंतरि, प्रजापति, मनु, विश्वकर्मा, और मनीषियों को प्राप्त हुई।
:
महर्षि परशुराम भी शिव के शिष्य बनकर शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत हुए।
ऐसा बिल्कुल भी नही है कि विद्या और ज्ञान पर केवल पुरुष सत्ता का एकाधिकार था।
माता सरस्वती, सती, लक्ष्मी, विद्या, शस्त्र, और प्रबन्धन के ज्ञान की श्रेष्ठ धारक बनीं। इन्ही के साथ यह परंपरा गुरुकुलों तक आई और कई अन्य शानदार विदुषी विश्व को मिलीं। केकई, हो या मंदोदरी, तारा, से लेकर अहिल्या, विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी, लोपामुद्रा, मैत्रेयी, सिकता, रत्नावली द्रोपती इत्यादि प्राचीन नाम हैं तो वहीं जीजाबाई, लक्ष्मीबाई, गुरुभक्त कालीबाई, सरोजनी नायडू , अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी,से लेकर दीपा महता तक इस इतिहास की साक्षी हैं।
गुरु और शिष्य का नाता दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है।
मन बुद्धि आत्मा तक जिसकी पकड़ होती है।
वह गुरुजी ही होते है। जब भी उनके साथ कुछ
उपेक्षित किया जाए तो, उन्हें बहुत दुःख होता है।
और रूठे इष्टदेव का कोपभागी बन,
ख़ामियाजा भुगतना ही पड़ता है।
आप सभी को
परशुराम जयंती की शुभकामनाएं।

कैप्शन पढ़ ही डालिये...💐
क्रमशः- 02 #गुरु_और_शिष्य हमारे शास्त्र और पुराण तो गुरु शिष्य के दृष्टांतो से भरे पड़े हैं। सृष्टि के आरंभ से यह परंपरा हमने ही दुनिया को दी।
इसका प्रमाण हमारा ऋग्वेद है।जिसे दुनिया के प्रमुख शोध संस्थान प्राचीनतम ग्रंथ मान चुके हैं।
सनातम परम्परा से आज की अधुनिकता तक हमने गुरु और शिष्य के शानदार उदाहरण देखे है।
आदित्य और अंगिरा ऋषि से शुरू हुई ये परम्परा सूर्य शिव वृहस्पति इंद्र तक आई उसके बाद ब्रह्मा जी से धन्वंतरि, प्रजापति, मनु, विश्वकर्मा, और मनीषियों को प्राप्त हुई।
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महर्षि परशुराम भी शिव के शिष्य बनकर शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत हुए।
ऐसा बिल्कुल भी नही है कि विद्या और ज्ञान पर केवल पुरुष सत्ता का एकाधिकार था।
माता सरस्वती, सती, लक्ष्मी, विद्या, शस्त्र, और प्रबन्धन के ज्ञान की श्रेष्ठ धारक बनीं। इन्ही के साथ यह परंपरा गुरुकुलों तक आई और कई अन्य शानदार विदुषी विश्व को मिलीं। केकई, हो या मंदोदरी, तारा, से लेकर अहिल्या, विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी, लोपामुद्रा, मैत्रेयी, सिकता, रत्नावली द्रोपती इत्यादि प्राचीन नाम हैं तो वहीं जीजाबाई, लक्ष्मीबाई, गुरुभक्त कालीबाई, सरोजनी नायडू , अमृता प्रीतम, इंदिरा गांधी,से लेकर दीपा महता तक इस इतिहास की साक्षी हैं।