कभी धारा हूं मैं निरंतर बहती नदी की, कभी ठहराव हूं तड़ागों के जल का। कभी शोर हूं मैं खग कलरव सा , तो कभी शांत हूं झील के नीर सा । कभी चंचल हूं मैं गिलहरी की चाल सी, कभी हूं एकाग्रचित बक के स्वभाव सा। हूं मैं कभी वाकपटुता की परिचायक, तो कभी हूं आशुतोष सा मौन। तीव्रता हूं मैं कभी शशक की, तो हूं कभी कूर्म की चाल सी। शिशु की नटखट भी हूं , तो हूं कभी सूचक नम्रता की। ©Deepa Sati #मैं #flowers