" एक परदेशी " चार साल हो गया है घर तो अब जाना है बहुत सह लिया दर्द-गम अब तो मुस्कुराना है चार साल हो गया है............ करवटें बदलता हूं याद घर की आती है सोचते-सोचते यूहीं रात गुजर जाती है दिल ये सफ़र में है और घर ठिकाना है चार साल हो गया है घर तो अब जाना है बहुत सह लिया दर्द-गम......... दिल के जितने दर्द थे खुद ही खुद से बांटें है चार साल का हर दिन उंगलियों पर काटे हैं खुद ही कपड़े धुलने थे खाना भी बनाना था नींद पूरी हो या न हो काम पर भी जाना था इन सब मुश्किलों से अब हमको निकल आना है चार साल हो गया है घर तो अब जाना है बहुत सह लिया दर्द-गम............. एक थी महबूबा जो दिल को भाती थी मेरी गलियों में भी वो कभी-कभी आती थी एक दूसरे को हम हरपल तकते रहते थे न वो ही कुछ कहती थी न हम ही कुछ कहते थे उससे भी तो मिलना है हाल-ए-दिल बताना है चार साल हो गया है घर तो अब जाना है बहुत सह लिया दर्द-गम.......... - गुमनाम शायर"Mahboob" #परदेशी #घर #मां #गांव #महबूबा #परदेश #गुमनाम_शायर_महबूब #gumnam_shayar_mahboob