|| श्री हरि: ||
70 - भूख
'दादा। मुझे भूख लगी है।' कन्हाई की भूख इसके उदर में नहीं रहती, पदार्थ में रहती है। जब कोई पदार्थ और उसे प्रस्तुत करने वाला श्याम को भोजन कराना चाहता है मोहन भूखा हो उठता है।
'मेरे छीके में अभी तेरे लिए भोजन बचा है।' दाऊ अपने छोटे भाई के लिए प्राय: अपने छीके में कुछ न कूछ बचा रखता है। सखाओं के साथ भोजन करते समय श्याम स्वयं तो कूछ खाता ही नहीं। यह तो दूसरों को खिलाने में ही रह जाता है। अब वन-भौजन के घण्टेभर पीछे ही इसे भूख लग गयी तो आश्चर्य की क्या बात है।
'मैं बासी नहीं खाऊँगा।' कन्हाई को कब क्या रुचेगा और कब क्या नहीं रुचेगा, इसका कुछ ठिकाना नहीं। इससे कौन पूछे कि घण्टेभर पीछे यही भोजन बासी कैसे हो गया, जो घण्टेभर पूर्व ताजा लगता था? #Books