"बक्श दो इनको , ये कहाँ जायेगे मासूम फ़रिश्ते है, झुलस जाएंगे l मत भरो अपनी नफरतो का जहर इनके मुलायम दिल पे, वरना चुभती साँसो - दुखती धड़कन से इतर अापकी तरह ये भी कुछ और नहीं पाएंगे बक्श दो इनको ये कहाँ जायेगे मासूम फ़रिश्ते है झुलस जाएगे ll है उजालों से भरे , "ये "रौशनी के दिये तुम्हारी नफरतो से मगर कल, ये घर भी जलाएंगे थमा रहे है 'जो' आज खंजर नन्हे हाथो मे, उन्हें ये याद रहे "उसके" इन्साफ मे क़ातिल तो "वो ही "कहलाएंगे बक्श दो इनको ......... लकीरें पीटने की आदत ही पड़ गई हो जिन्हे नये ढंग से जीने का सबब कैसे पायेंगे जिन्दा इंसानो से ज़ियादा मुर्दो की फिकर है जिनको कल की तस्वीर मे नये रंग कैसे लाएंगे है गुजरे ज़माने से मुहब्बतों की दीवानगी जिनको हर नये आज मे वो सिर्फ "इतिहास" ही दोहरायेगे!! बक्श दो इनको ये कहा जाएगे, मासूम फ़रिश्ते है झुलस जायेगे l बक्श दो इनको...