थक जाने दो आवाज़ों को और पुकार निथर जाने दो छन जाने दो अथक चांदनी देखो चांद निकल आने दो मुग्ध मौन पर मन हो जाए ऐसी दृष्टि निखर आने दो फूलों पर तरंग का उठना पुलक हवा में घुल जाने दो और स्पर्श की सरस व्यंजना तंत्री में चंचल हो जाने दो अभासों को बनकर बादल पुनि - पुनि नित्य बरस जाने दो आसमान की रंगिम चिट्ठी हरित धरा मन रंग जाने दो मत पूछो तुम बात प्रीत की मत ओढ़ो कोई जात प्रीत की मत पूजो धर्म की वेदी मत समझो प्रमाद रीति की उन आंखों में देखो चंदा प्रतिमा हैं जो आप प्रीति की पूरी कविता caption में पढ़ें थक जाने दो आवाज़ों को और पुकार निथर जाने दो छन जाने दो अथक चांदनी देखो चांद निकल आने दो मुग्ध मौन पर मन हो जाए ऐसी दृष्टि निखर आने दो फूलों पर तरंग का उठना पुलक हवा में घुल जाने दो