_#कवी'धनूज. #बडी आऱजू थी.. बडी आऱजू थी मुलाका़त कि, नज़र भर तुझे देखने कि, अधूरा रिश्ता अधूरीं बातों को पुरा करने कि, मजबूरीयों में जीये रिश्तें को हकीकत में लाने कि, नींद खुली, सपने टुटे आदतें बनी तेरी यादों में जीने कि, बडी आऱजू थी मुलाका़त कि, नज़र भर तुझे देखने कि, अधूरा रिश्ता अधूरी बातों को पुरा करने कि, -लेखक'कवी- (धनंजय संकपाळ) #धनूज | रंग मनाचे. #शायरी_आरजू