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बचपन का पहला प्यार बचपन में प्यार तो गुड़ियों से हु

बचपन का पहला प्यार बचपन में प्यार तो गुड़ियों से हुआ था हाँ मेरा पहला प्यार बार्बी डॉल थी,
रजं बिरंगे कपड़े पहनी पतली पतली, पाना चाहती मैं वो बार्बी डॉल थी,
मन को जितना वो लुभाती थी, जेब से उतना ही वो मेरे दूर थी। 
एकटक देखा करती थी उनको, साधारण गुड़ियों की तो भरमार थी।
हां अजब सा था वो प्यार उनके लिए, कभी माँ, कभी सखी बना देता था,
खुद को कुछ भी न आता हो मगर,  गुड़ियों को बहुत पढ़ा देता  था।
छोटे छोटे कपड़े उनके लिए अपने हाथों से रोज  सिलती थी,
सुई चुभे या ब्लेड से हाथ कटता तो खून झट से पी लेती थी।
और तो और  जाड़ों में  स्वेटर, मोजे, टोपी, दस्ताने बनाती थी।
अक्सर माँ डांटने लगती ऊन लेने पर, मगर फिर बुनाई सिखाती थी,
गुड़ियों के प्यार में ओ  सखी तू लंबे समय तक छोटी सखी ही रह गई,
कब गुजरा बचपनन कब जवानी , गुड़ियों के प्यार में सखी दीवानी भई। 

©सखी #बचपन #प्यार #गुड़िया #सखी
बचपन का पहला प्यार बचपन में प्यार तो गुड़ियों से हुआ था हाँ मेरा पहला प्यार बार्बी डॉल थी,
रजं बिरंगे कपड़े पहनी पतली पतली, पाना चाहती मैं वो बार्बी डॉल थी,
मन को जितना वो लुभाती थी, जेब से उतना ही वो मेरे दूर थी। 
एकटक देखा करती थी उनको, साधारण गुड़ियों की तो भरमार थी।
हां अजब सा था वो प्यार उनके लिए, कभी माँ, कभी सखी बना देता था,
खुद को कुछ भी न आता हो मगर,  गुड़ियों को बहुत पढ़ा देता  था।
छोटे छोटे कपड़े उनके लिए अपने हाथों से रोज  सिलती थी,
सुई चुभे या ब्लेड से हाथ कटता तो खून झट से पी लेती थी।
और तो और  जाड़ों में  स्वेटर, मोजे, टोपी, दस्ताने बनाती थी।
अक्सर माँ डांटने लगती ऊन लेने पर, मगर फिर बुनाई सिखाती थी,
गुड़ियों के प्यार में ओ  सखी तू लंबे समय तक छोटी सखी ही रह गई,
कब गुजरा बचपनन कब जवानी , गुड़ियों के प्यार में सखी दीवानी भई। 

©सखी #बचपन #प्यार #गुड़िया #सखी