गले में अटकी जान बार बार यहीं चिल्ला रही है, आख़िर क्यों न रूह अब जिस्म से नहीं जा रही है, सब दर्द तो देख लिया जो मिले है जख्म अपनों से, कर दे जुदा रूह को ख़ुदा अब ये अंदर से ख़ा रही है, गर ये दर्द न देते यूं अपने तो जीना कैसे सीखते हम, मगर अब तड़प है अंदर बस रूह मौत को बुला रही है, आ बैठ मेरे पास कि रब तुझे अपनी कहानी सुनाऊ मैं, किस तरह से अब ये जिस्म सांसों का बोझ उठा रही है, कितना ओर वाक़िफ होना रहता है अब इस दुनिया से, क्यों ये रूह जो मिली खुशियों को अब जूठा बता रही है, हर बार मिली है नाकामयाबी मुझे मरने की कोशिश में भी, क्यूं आख़िर ए - रब मौत लगा हर बार मुझसे दूर जा रही है !! A.S #hugmedeardeath