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पहुँचाए मंज़िल तक, वो राह ढूँढता हूँ। पहुंच जाए दि

पहुँचाए मंज़िल तक, वो राह ढूँढता हूँ।
पहुंच जाए दिल तक, वो चाह ढूँढता हूँ।
बस जाए दिल की, अपनी उजाड़ बस्ती,
करे कोई अपनी भी, परवाह, ढूँढता हूँ।
लोग दिल देकर, पल मे बदल जाते हैं,
तभी तो मै जामिन, गवाह ढूँढता हूँ। नमस्कार लेखकों।😊

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पहुँचाए मंज़िल तक, वो राह ढूँढता हूँ।
पहुंच जाए दिल तक, वो चाह ढूँढता हूँ।
बस जाए दिल की, अपनी उजाड़ बस्ती,
करे कोई अपनी भी, परवाह, ढूँढता हूँ।
लोग दिल देकर, पल मे बदल जाते हैं,
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