श्रृंगारदानी....... दर्पण तो सामने है, मगर आज उसमें चेहरा नहीं है। अपरिचित - सा जान उसको, प्रश्न उससे पूछता है। जो सदा पलकें झपकते, देती थी उत्तर सारे। आज लेकिन..... देखती है श्रृंगारदानी!! Give a read once.. 🌼 /Full poem in caption / ... शोर है चारों तरफ, पर फिर भी बैठा मौन कोई। सजल लोचन आज छलके.. अंजन शनै : बहा रहे हैं। सिसकियाँ चुपचाप अंदर, ये अंधेरा ले रहा है..