रहस्य भरे प्रश्न (भाग १) [कहानी] सामाजिक बुराई पर आधारित कहानी जहाँ लड़का-लड़की में अन्तर दिखाई देता है। (अनुशीर्षक में पढ़ें) Diary 13.10.2003 आज घर में सन्नाटा छाया हुआ था। आज की बात ही क्यों यह रोज़ का माहौल बनता जा रहा था। अपनी सास के देहान्त के पश्चात् सरस्वती घर में अकेली पड़ गई थी। उसके पति रामशरण गोपाल को अक्सर अपने दफ़्तर से देर हो जाया करती थी और सरस्वती घर में अकेले बैठी रहती। आजकल सरस्वती बहुत उदास रहती थी। स्वभाव में थोड़ा चिड़चिड़ापन भी आ गया था। उदासी क्यों न हो, घर का सूनापन उन्हें बहुत खलता था। पाँच वर्ष हो गये थे उनकी शादी को, मग़र निःसन्तान थे और यही चिन्ता पति-पत्नी दोनों को दिन-रात खाये जा रही थी। गोपाल तो स्वयं को दफ़्तर के कामों में व्यस्त कर लेते थे और सरस्वती को भी समझाया करते कि वह इतनी चिन्ता न किया करे, नहीं तो उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सरस्वती आज अपना चैक-अप करवाने के लिए अस्पताल गई। उसे वहाँ पता चला कि वह माँ बन सकती है तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न रहा। वह घर लौटी और पति के आने का इन्तज़ार करने लगी। आज वह बेसब्री से घड़ी की ओर देख रही थी। आखिर बात भी तो खुशी की थी। पति शाम को दफ़्तर से लौटे तो सरस्वती उन्हें शुभ समाचार सुनाने के लिए स्वयं चाय लेकर उनके पास गई। प्रसन्नता उसके चेहरे से स्पष्ट झलक रही थी। "आज बड़ी खुश लग रही हो। क्या बात है?," गोपाल कहने लगे।