//चलते- चलते// ***************** दुनिया देखने की चाहत थी, आज वो मंज़र देख आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। चलते चलते जाने कहां आ गए, हिद्धत ए ताब महसूस करना था, मैं ठंडी राख का धुआं सेंक आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। वबा ए कोरोना का संकट भारी है, ना जाने किसकी नजर लगी इस दहर पर, मैं अपनी आंखों से श्मशान देख आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। खबर में देखा 3 दिन की बच्ची और 6 महीने की बच्ची, के मां-बाप को करोना ने मार गिराया, सुनकर यह दर्दनाक खबर सबका दिल भर आया कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। चलते- चलते उम्मीद का एक शफ़्क़ जला आया, करके इमदाद बेसहारों की, 84 के जिंदान से खुद को आज़ाद पाया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। दुनिया देखने की चाहत थी, आज वो मंज़र देखा आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया। चलते चलते जाने कहां आ गए, हिद्धत ए ताब महसूस करना था, मैं ठंडी राख का दुआ सेंक आया, कहीं पर चीखे तो कहीं , आजाब का मंज़र है छाया।