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क्या मैं इतनी बुरी हूं.... पुस्तक सोई पुस्तकालय मे

क्या मैं इतनी बुरी हूं....
पुस्तक सोई पुस्तकालय में बोली
इतने दिन चुप रहने के बाद
आज वो अपना मुंह खोली
मुस्किल से कोई मुझे ले जाता है
वो भी रख मुझे टेबल पर
सामने मेरे सो जाता है
क्या मैं इतनी बुरी हूं....
मैं एक जगह रखे रखे थक जाती हूं 
एक बार भी तो वो मुझे खोलकर देख ले
इसके लिए तरस जाती हूं 
जब वो बाहर जाता फोन साथ ले जाता
जब वापस आता फोन में लग जाता
वो तो मेरा ख्याल ही भूल जाता है 
क्या मैं इतनी बुरी हूं....
मैं मददगार..., इतनी काम की हूं
फिर भी क्यों लगती बेकार हूं
कुछ तो देख मुझे अजीब सी शक्ल बनाते
जैसे लिखा हो मुझमें ऐसा कुछ
जिसे देख वो डर जाते 
क्या मैं इतनी बुरी हूं....

©Sankranti 
  #पुस्तक