स्मृतिशेष माखनलाल चतुर्वेदी 'पुष्प की अभिलाषा' की प्रेरणा से-- *दिल की अभिलाषा* ------ चाह नहीं मैं चाहत बनकर प्रेमी-युगल को तड़पाऊं चाह नहीं, खिलौना बनकर टूटू और बिखर जाऊं चाह नहीं, पत्थर बनकर निर्मम,निष्ठुर कहलाऊं चाह नहीं, बंधन में पड़कर स्पंदन की प्रीत जगाऊं चाह मेरी है धड़कन बनकर रहूं सदा कुर्बान और तिरंगे में लिपट कर हो जाऊं मैं हिंदुस्तान। ------ सर्वाधिकार सुरक्षित-- नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' नरैना,रोकड़ी,खाईं,खाईं यमुनापार,करछना,प्रयागराज 🙏 ©Narendra Sonkar #dil ki abhilasha