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युगों -युगों से प्रतिस्थापित तू धरती-नभ का मीत प्र

युगों -युगों से प्रतिस्थापित
तू धरती-नभ का मीत प्रवर
एक पागल आँधी ने आकर
क्यूँ तोड़ दिया पावन तरुवर

ओ नभचर के आलय अनंत
वेला से पंछी अकुल-विकल
चिर आनंदाय मयूर चकित
करुणामय सघन पवन शीतल

हे रविकर रक्षक!फलतृणधर!
पीड़ित मन आहत तितर-बितर
प्रकृति के रक्षक नमन तुम्हें
अर्पण मुक्तावली सुमनाकर!

वंदन कर अनुनय-विनय करूँ
फिर हरित-पत्र बरसा जाओ
प्रिय!स्वप्न निमंत्रण है तुमको
बस एक बार फिर आ जाओ

©Upasana Kaushik #kavita #Prem #Hindi #Nature
युगों -युगों से प्रतिस्थापित
तू धरती-नभ का मीत प्रवर
एक पागल आँधी ने आकर
क्यूँ तोड़ दिया पावन तरुवर

ओ नभचर के आलय अनंत
वेला से पंछी अकुल-विकल
चिर आनंदाय मयूर चकित
करुणामय सघन पवन शीतल

हे रविकर रक्षक!फलतृणधर!
पीड़ित मन आहत तितर-बितर
प्रकृति के रक्षक नमन तुम्हें
अर्पण मुक्तावली सुमनाकर!

वंदन कर अनुनय-विनय करूँ
फिर हरित-पत्र बरसा जाओ
प्रिय!स्वप्न निमंत्रण है तुमको
बस एक बार फिर आ जाओ

©Upasana Kaushik #kavita #Prem #Hindi #Nature