विरह की पीड़ा जब लगी, सताने,अधरों ने खींची लाली.. रात तले अंधियारा, मुझसे रह रह पूछे.. तू कोन है ? पर मेरे........ शब्द सब मौन है। खिड़की से हवाये, घुटन साथ लाई.. सूरज के जलते, पैर....रात अंधेरे को भटका आई... दबे पांव ,चंदा जो, मेरे आंगन आया... तारों का सरदार , मुझसे रह रह पूछे .. तु कौन है ? पर मेरे......... शब्द सब मौन है। धूप खड़ी, चिलमिला रही, पेड़ छाया को ,तरस रहे सागर भीगा ,ठिठुर रहा धरा शून्य सी ,ताक रही कोयल की टोली, मुंडेर पर बैठे,... मुझसे रह रह पूछे.. तू कौन है ? पर मेरे........... शब्द सब मौन है विरह वेदना ,सुलग रही अग्नि तपिश में , झुलस रही ....... मछलियां जल में डूब रही जल भवँर में फंसा हुआ परियो की टोली आ, मुझसे रह रह पूछे... तू कौन है ? पर मेरे......... शब्द सब मौन है। (आयुषी भंडारी) (इंदौर मप्र) विरह की पीड़ा