कर्म से भक्ति, कर्मभक्ति से सरसता... कर्म से भक्ति... कर्म भक्ति से सरसता... कर्म से भक्ति? ये कौनसी, कई भक्ति है? मेरे लिए कर्म ही भक्ति है, वास्तव में कर्म करते समय हमारा केंद्र होता है स्वार्थ, स्वार्थ में स्वयं और अपना परिवार। मैंने जब सीखा की कर्म के केंद्र को थोड़ा सा विस्तृत करना है, अर्थात स्व हित तो हो उसमे पर हित भी जुड़ा हो। ये सहज, सरल सी पद्धति मुझे पूजा पाठ से श्रेष्ठ भक्ति लगी।