राज़ साजिशगर्दों ने चाहतें थीं मुझे तबाह करने की! और इक-इक साजिशें मुझे मालामाल करती रही!! ©बृजेन्द्र 'बावरा' www.facebook.com/bawraspoetry/ साजिशगर्दों ने चाहतें थीं मुझे तबाह करने की! और इक-इक साजिशें मुझे मालामाल करती रही!! ©बृजेन्द्र 'बावरा' www.facebook.com/bawraspoetry/